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प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन के बड़ा करीब रहलें उनके बेटा अमिताभ, बढ़िया निभल बाप बेटा के रिश्ता

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मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला

लोकप्रिय काव्य कृति ‘मधुशाला’ के ई पहिला दू गो पंक्ति ह. मधुशाला, देसी भाषा में शराबघर के कहल जाला बाकिर नई कविता आंदोलन के प्रखर कवि अउरी प्रगतिशील साहित्यकार हरिवंश राय बच्चन के कलम के भाव एकर कुछ और गहीर आ सार्थक अर्थ निकालेला. हरिवंश राय बच्चन उत्तर छायावाद के प्रमुख कवि रहलें. ओह दौर के कविता में प्रेम के स्पष्ट आ शरीरी रूप के अभिव्यक्ति सबसे ज्यादा होखे. कहे के माने रोमांटिसिजम के दौर रहे, जवन हरिवंश राय बच्चन के लेखन शैली में मिलेला. बच्चन साहब छंद मुक्त अउरी छंद युक्त दुनू तरह के कविता लिखीं. हिन्दी कवि लोग में बच्चन जी बहुत लोकप्रिय कवि भइनी. एकर एगो कारण उहाँ के रसदार लेखन शैली आ कविता पाठ रहे, दूसर कि उहाँ के बेटा भारतीय फिल्म जगत के महानायक हवें. जी हाँ, अमिताभ बच्चन के स्टारडम अपना पिता के प्रसिद्धि बढ़वलस. कवनो बाप खातिर एकरा से बड़ संतुष्टि के विषय का हो सकेला कि उ अपना बेटा के नाम से लोकप्रिय होखे, बच्चन साहब ई जरूर महसूस कइले होइहें.

27 नवंबर 1907 के उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जिला के बाबुपट्टी गाँव में हरिवंश राय के जनम भइल. उनके पिताजी प्रताप नारायण श्रीवास्तव आ माई के नाम सरस्वती देवी रहे. ‘बच्चन’ उनके लइकाईं के नाम रहे. बच्चन के माने भी होला छोट लइका के स्वभाव वाला. हरिवंश राय जीवन भर अपना बाल मन के सहेज के रखे के जुगत में रहलें. साइत, उनके कविता में चुहलपन भी इहे लइकाईं वाला मन के करामात ह. अपना बाबूजी से अमिताभ भी लइकाईं विरासत में ले लेहलें अउरी खाली नामे में बच्चन ना लगवलें बाकिर अपना अभिनय में भी उहें ताजगी, उहे बालपन के सहजता अभी ले रखले बाड़ें. हरिवंश राय जब लिखे लगलें त आपन तखल्लुस के रूप में बच्चन शब्द के लगावे लगलें. उ कायस्थ परिवार से रहलें बाकिर श्रीवास्तव सरनेम ना लगवलें. कहे वाला लोग कहेला कि बच्चन साहब जाति प्रथा के कट्टर विरोधी रहलें एहीसे आपन जाति के नाम हटा के पेन-नेम लगा लेहलें.

हरदम हिन्दी बोले वाला अउरी हिन्दी के वकालत करे वाला बच्चन साहब के परास्नातक अंग्रेजी में भइल रहे अउरी उ जब पीएचडी भी कइलें त अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि डब्ल्यू बी यीट्स के ऊपर शोध करके कइलें. जब कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पढ़ाई कर के स्वदेश लवटलें त इहाँ इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उ अंग्रेजी पढ़ावे लगलें. बाकिर उनके लेखन अउरी साहित्यिक सेवा हिन्दी में चले लागल. हिन्दी से उनके एतना प्यार ही रहे कि उनके भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ के रूप में राख लिहल गइल. बाकिर मंच पर बच्चन साहब के लोकप्रियता त बढ़ते रहे, एही के चलते उनके नजदीकी जिला – जवारी जवाहरलाल नेहरू से हो गइल. ई रिश्ता बाद के साल ले चलत रहल. अमिताभ के जब फिल्म इंडस्ट्री में एंट्री करे के रहे त इंदिरा गांधी के चिट्ठी उनके पहिला फिल्म सात हिन्दुस्तानी के निर्देशक के. ए. अब्बास के लगे आइल रहे. जब 1983 में कूली फिल्म के शूटिंग के दौरान जब अमिताभ के घाव लाग गइल अउरी उ मुए से बचलें तब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी आपन विदेश के ट्रिप कैन्सल कर के उनका साथे अस्पताल में उपस्थित रहलें. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी दिल्ली से उनके देखे पहुंचल रहली.

बाप बेटा के रिश्ता अच्छा निभल

हरिवंश राय बच्चन अउरी उनके बड़ बेटा अमिताभ बच्चन के बीच रिश्ता बड़ा बढ़िया निभल. अमिताभ के समय-समय पर अपना पिता के मार्ग दर्शन मिलल अउरी हिदायत भी. एक बार के किस्सा अमिताभ बच्चन सुनवलें रहलें कि उ तब देहरादून के बोर्डिंग स्कूल में पढ़त रहलें. उनके स्कूल में रंगमंच के प्रतियोगिता होखे वाला रहे अउरी उ एगो नाटक में महत्वपूर्ण किरदार करत रहलें. बाकिर तले उनके तबीयत खराब हो गइल आ उ बिस्तर पर पड़ गइलें. उनके बाबूजी उनसे भेंट करे गइलें त अमिताभ रोए लगलें आ कहलें कि हम बड़ा तइयारी कइले रहनी हं अउरी बड़ा मन रहल ह, हमरा ई नाटक करे के. उनके बाबूजी समझवलें अउरी उ जवन लाइन कहलें उ आजुओ लोग कोट करेला. “मन का हो तो अच्छा, ना हो तो उससे भी अच्छा.” ‘अर्थात, ईश्वर आपके लिए और भी बेहतर योजना बना चुका है तभी आपके मन का नहीं हुआ.’ भइल भी अइसने, उ नाटक छूट गइल बाकिर अमिताभ के अंदर अभिनय के आग धधक गइल जवन बाद में उनके भारतीय सिनेमा के सदी के महानायक बना देहलस.

अइसहीं एक बार अमिताभ जवानी के टाइम बड़ा परेशान रहलें जब उ स्नातक कइला के बाद का करस का ना करस के द्वन्द्व में फँसल रहलें. हताश होके उ ई सोचे लगलें कि उनके जिनगी व्यर्थ बा अउरी उनके पैदा ही ना होखे के चाहत रहे.” अपना बाबूजी से जाके उ तनी काठ होके पूछ दिहलें कि हमके पैदा काहें कइनी. उनके बाबूजी ओह बेरा त जवाब ना दिहलें अउरी उहाँ से चल दिहलें बाकिर अगिला दिने उनका बिस्तर के लगे टेबुल पर एगो पर्ची में कुछ लिख के छोड़ देहलें. जब अमिताभ उ पढलें त बड़ा लजइलें आ कई दिन ले बाबूजी के लगे ना गइलें. पर्ची में लिखल रहे –

जिंदगी और जमाने की कशमकश से घबराकर,
मेरे बेटे मुझसे पूछते हैं कि हमें पैदा क्यों किया था?
और मेरे पास इसके सिवाय कोई जवाब नहीं है कि,
मेरे बाप ने मुझसे बिना पूछे मुझे क्यों पैदा किया था?
और मेरे बाप को उनके बाप ने बिना पूछे उन्हें और उनके बाबा को बिना पूछे,
उनके बाप ने उन्हें क्यों पैदा किया था?

साल 2003 में सांस लेबे में दिक्कत होखला के चलते 96 साल के उमिर में हरिवंश राय बच्चन एह दुनिया से सुरलोक सिधार गइलें.

(लेखक मनोज भावुक भोजपुरी साहित्य और सिनेमा के जानकार हैं.)

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