उत्तराखंड

CDS बिपिन रावत की मौत से सदमे में हैं उनके सीनियर रहे ये अधिकारी, साझा की जनरल रावत से जुड़ी यादें

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हल्द्वानी. भारतीय सेना में ऐसे बहुत अफसर हैं जिन्होंने देश के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत के साथ काम किया. न्यूज18 आपको ऐसे ही एक ऑफिसर से रू-ब-रू करा रहा है, जिनके साथ न सिर्फ जनरल बिपिन रावत ने जूनियर ऑफिसर के तौर पर काम किया, बल्कि उनके पिता लक्ष्मण सिंह रावत भी साथी रहे. सेना से रिटायरमेंट के बाद हल्द्वानी में रह रहे मेजर जनरल इंद्रजीत सिंह बोरा ने न्यूज18 से एक्सक्लूसिव बात की. उन्होंने सीडीएस बिपिन रावत और उनके परिवार के बारे में कई अनसुनी बातें साझा की.

रिटायर्ड मेजर जनरल इंद्रजीत सिंह बोरा ने बताया कि जनरल रावत के खून में साहस कूट-कूट कर भरा हुआ था. उनके दादा जी, पिता जी और खुद वो सैन्य अफसर थे. रावत परिवार का पूरा समर्पण देश के लिए था. उनका परिवार भारतीय संस्कृति में रचा बसा परिवार था. बिपिन रावत के पिता 11-जीआर से लेफ्टिनेंट जनरल के पद से रिटायर हुए. बिपिन ने 19 साल की उम्र में आईएमए में ट्रेनिंग शुरू की. वहां उन्हें सर्वश्रेष्ठ कैडेट के तौर पर स्वोर्ड ऑफ ऑनर से नवाजा गया.

यादगार था बिपिन का रिसेप्शन

बोरा ने बताया कि मैं 1986 में इराक से वापस आया. मैंने आते ही बठिंडा में जॉइन किया. इस दौरान बिपिन के पिता लक्ष्मण सिंह रावत कोर कमांडर थे और मैं उनके ऑपरेशन कोर का कर्नल-जनरल स्टाफ था. इसी दौरान गर्मी के मौसम में सैन्य ऑफिसर बिपिन की शादी मध्य-प्रदेश के शहडोल राजघराने की राजकुमारी मधुलिका सिंह से हुई. उनके पिता ने बेटे बिपिन और बहू मधुलिका की शादी की ग्रांड रिसेप्शन पार्टी दी थी. मुझे याद है इस रिसेप्शन में मैं भी परिवार समेत शामिल हुआ. ये एक यादगार रिसेप्शन था. बिपिन के पिता के रिटायर होने के बाद मुझे बिपिन के साथ काम करने का मौका मिला. दोनों पिता और पुत्र बेहद ईमानदार और देश के लिए मर मिटने को तैयार रहते थे. उनकी डिक्शनरी में ना नाम का कोई शब्द नहीं था.

मेजर जनरल बोरा के अनुसार साल 1995 से 1997 में वो एक डिविजन के जनरल ऑफिसर कमांडिंग थे. इसी दौरान बिपिन रावत उनके अंडर स्टाफ ऑफिसर रहे. इस दौरान उनके परिवार के बीच घनिष्ठ मित्रता हो गई. हमारी बीच-बीच में बिपिन से बात हो जाया करती थी लेकिन ये बातें स्वास्थ्य और परिवार को लेकर हुआ करती थी.

सीडीएस पद के लिए वे थे बेस्ट

मेजर जनरल इंद्रजीत सिंह बोरा के मुताबिक चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का गठन करते ही सरकार को एक योग्य अफसर की तलाश थी. इसके लिए बिपिन रावत से अच्छा नाम कोई नहीं हो सकता था. जिन्होंने म्यांमार में सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर उरी हमले के बाद पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक की पूरी व्यूह रचना की थी. सीडीएस का काम था तीनों सेनाओं को इंटीग्रेट करना. यानी एक साथ काम करने के लिए बेहतर सामंजस्य बनाना और जनरल बिपिन रावत ये काम बखूबी कर रहे थे.

सीडीएस के गठन के दौरान निर्णय हुआ था कि एक थिएटर कमांड बनाया जाए. जिसमें तीनों सेना मिलकर काम करे. इसके अनुसार छह थिएटर कमांड पहले बन रही हैं, उसमें से 4 सेना के अंडर में काम करेंगी जबकि एक नेवी और एक भारतीय वायुसेना के अंडर में काम करेंगी. जनरल रावत इसी थियेटर कमांड पर काम कर रहे थे. जो अगले 6 महीने के भीतर जमीन पर उतरनी थी.

इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप बनाना था

बोरा ने बताया कि जनरल रावत ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद चली आ रही सेना की फॉर्मेशन में बड़ा बदलाव लाने की ठानी थी. जिसके लिए वह कई तरीके के काम कर रहे थे. उनका जोर डिवीजन की जगह अब इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप बनाने पर था. मतलब सेना के हर व्यक्ति का मिलजुल कर काम करना और नई टेक्निक के साथ काम करना यही उनका टारगेट था. बिपिन का चला जाना बहुत बड़ा नुकसान है. देश अचानक बड़े संकट में चला गया है क्योंकि जनरल रावत ऐसे समय में चले गए हैं, जब एक तरफ नॉर्दर्न इलाके में भारत चीन से जूझ रहा है तो दूसरी तरफ वेस्टर्न इलाके में पाकिस्तान की चुनौती है. बिपिन के असामयिक निधन से सेना के फॉरमेशन में हो रहे बदलाव में थोड़ी रुकावट जरूर आ सकती है. उम्मीद है कि देश को जल्द सीडीएस मिलेंगे और वो जनरल रावत के कामों को आगे बढ़ाएंगे.

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