उत्तराखंड

बदल गए रिश्ते : लिपुलेख बॉर्डर पर कड़ाके की ठंड में भी डटे रहेंगे नेपाल के जवान, जानिए क्यों

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पिथौरागढ़. उत्तराखंड में नेपाल के साथ जो भारत का बॉर्डर जुड़ता है, वहां सुरक्षा के लिहाज़ से अब नेपाल भी गंभीर नज़र आ रहा है. उत्तराखंड में नेपाल से भारत का 280 किलोमीटर का बॉर्डर लगता है. इस खुले बॉर्डर को काली नदी बांटती है. एक दौर था, जब नेपाल इस बॉर्डर को लेकर शांत ही रहा करता था, लेकिन चीन बॉर्डर को जोड़ने वाली लिपुलेख रोड कटने के बाद उसके सुर बदल गए हैं. आलम ये है कि अब लिपुलेख बॉर्डर के करीब तिंकर में नेपाल ने साल भर सुरक्षा बलों को तैनात करने का फैसला लिया है. एक सवाल तो यह है कि क्या सिर्फ नेपाल ने ही यह फैसला किया है? और दूसरा यह कि इस फैसले को लेकर बॉर्डर पर क्या स्थिति है.

पहले माइग्रेट होते थे सुरक्षा बल, लेकिन अब…
करीब 13 हजार फीट की ऊंचाई पर तिंकर बॉर्डर पर भारत, नेपाल और चीन का ट्राईजंक्शन हैं. सर्दियों में इस गांव के लोग निचले इलाकों की तरफ माइग्रेट हो जाते हैं. ग्रामीणों के साथ ही बीते सालों तक नेपाली सुरक्षा बल भी माइग्रेट हो जाते थे, लेकिन अब नेपाल ने इस संवेदनशील बॉर्डर पर साल भर सुरक्षा बलों को तैनात रखने फैसला कर लिया है. नेपाल ही नहीं, बल्कि भारत ने भी लिपुलेख रोड से उपजे विवाद के बाद इस बॉर्डर पर साल भर सुरक्षा बलों की तैनाती की है. तिंकर उस क्षेत्र में है, जहां नेपाल अपना दावा जताता है. नेपाल के दावों के बारे में भी समझना चाहिए.

नेपाल ने खोले 8 नए मोर्चे
गौरतलब है कि नेपाल ने लिपुलेख रोड को अपनी जमीन पर बताया है. नेपाल का दावा है कि इस बॉर्डर से लगे गुंजी, नाबी और कुटी गांव उसके हैं. नेपाल कालापानी को भी अपना बताता है. यही नहीं, नेपाल की केपी ओली सरकार ने काली नदी के उद्गम स्थल को कालापानी के बजाय, लिम्पियाधुरा माना है. नए राजनीतिक नक्शे में भारत के इन तीनों गांवों को नेपाल अपनी सीमा में दर्शा चुका था. भारत के साथ इस बॉर्डर पर उपजे सीमा विवाद के बाद पंचेश्वर से तिंकर तक नेपाल ने 8 नई बीओपी खोली हैं, जिनमें सुरक्षा बलों को साल भर के लिए तैनात किया गया है.

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बॉर्डर के सीमांत गांव माना में इस साल पांच दिवसीय लास्पा मेले में काफी उत्साह देखा जा रहा है.

देश के अंतिम गांव माणा में लास्पा मेला
नेपाल के साथ ही तिब्बत भी वह पड़ोसी है, जिसकी सीमा उत्तराखंड में भारत से मिलती है. न्यूज़18 संवाददाता नितिन सेमवाल की रिपोर्ट के मुताबिक तिब्बत चीन सीमा पर बसे भारत के आखिरी गांव माणा में बुधवार से पांच दिवसीय लास्पा मेला शुरू हो गया है. मेले के आखिरी दिन क्षेत्रपाल घंटाकर्ण के उत्सव विग्रह को शीतकाल में 6 माह के लिए अज्ञात स्थान रखा जाएगा. इस साल अंतिम दर्शन के लिए माणा गांव में श्रद्धालुओं की खासी भीड़ उमड़ी है. वहीं, मेले के समापन के बाद 16 नवंबर को ग्रामीण शीतकाल प्रवास पर 6 माह के लिए गोपेश्वर, घिंगरान, सिरोखोमा, जोशीमठ व अन्य जगह चले जाएंगे.

माणा गांव के पूर्व प्रधान भगत सिंह बड़वाल ने बताया कि 15 नवंबर को घंटाकर्ण जी के विग्रह को अज्ञात स्थान पर रखने की प्रक्रिया शुरू होगी. इस मेले में दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं और भोटिया जनजाति के लोगों के द्वारा निर्मित वस्त्रों को खरीदते हैं. कड़ाके की ठंड के बाद भी उत्साह से मनाए जाने वाले इस मेले को लेकर उन्होंने बताया कि बलवीर परमार, सोनू परमार, राकेश परमार, मेघ सिंह कठैत, लक्ष्मी बड़वाल ने इस वर्ष घंटाकर्ण मंदिर में सेवा दी. अगले साल गांव के अन्य चार परिवारों को सेवा करने का न्योता दिया जाएगा.

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