EXCLUSIVE | कश्मीर में जारी टार्गेट किलिंग में अंतरराष्ट्रीय हाथ, अब एनआईए करेगी केस की जांच
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एनआईए के सूत्रों ने सीएनएन-न्यूज18 को ये भी बताया है कि ये आतंकी हत्याएं हैं और वो इन मामलों की जांच करेंगे. (सांकेतिक तस्वीर)
J&K Minority Killings: 30 सितंबर को आतंकियों ने श्रीनगर के एक सरकारी स्कूल के दो शिक्षकों को निशाना बनाया था. स्कूल की प्राधानाध्यापिका सुपिंदर कौर और शिक्षक दीपक चंद की करीब से गोली मारकर हत्या कर दी गई.
नई दिल्ली. हाल के दिनों में जम्मू कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों में हुई अल्पसंख्यकों की हत्या ( Minority Killings) की तहकीकात अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) करेगी. सूत्रों के मुताबिक ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि क्योंकि माना जा रहा है कि इस तरह के हत्या में अंतरराष्ट्रीय संगठन का हाथ हो सकता है. जानकारी के मुताबिक जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकार इन मामलों को NIA को सौंपने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय को चिट्ठी लिखने वाली है. एनआईए के सूत्रों ने सीएनएन-न्यूज18 को ये भी बताया है कि ये आतंकी हत्याएं हैं और वो इन मामलों की जांच करेंगे.
बता दें कि 30 सितंबर को आतंकियों ने श्रीनगर के एक सरकारी स्कूल के दो शिक्षकों को निशाना बनाया था. स्कूल की प्राधानाध्यापिका सुपिंदर कौर और शिक्षक दीपक चंद की करीब से गोली मारकर हत्या कर दी गई. कौर श्रीनगर की रहने वाली सिख थीं, जबकि चंद जम्मू निवासी हिंदू थे. ये घटना उस वक्त हुई जब ये दोनों स्कूल में पढ़ा रहे थे. इस घटना के बाद घाटी के अल्पसंख्यक समुदाय दहशत में हैं.
सितंबर के आखिरी में ही कश्मीर में सात आम नागरिक मारे गए, जिनमें से तीन हिंदू और सिख समुदायों के थे. कहा जा रहा है कि ये टारगेट किलिंग है. एक सूत्र ने न्यूज़ 18 को बताया, ‘ हम हिंसा के पैटर्न में बदलाव देख सकते हैं. वे एक बहुत ही खास संदेश देना चाहते हैं कि गैर-मुसलमानों और अल्पसंख्यकों को स्वीकार नहीं किया जाएगा. इन आतंकी समूहों को नए डोमिसाइल एक्ट और नई चुनावी प्रक्रिया से दिक्कत है. ये टारगेट बहुत सॉफ्ट होते हैं. वो ऐसे लोग हैं जो समाज में और कश्मीर के लिए काम कर रहे हैं.’
जम्मू-कश्मीर पुलिस के मुताबिक इस साल अब तक 28 आम नागरिकों को आतंकवादियों ने मार डाला है, जिनमें से सात हिंदू या सिख हैं. पिछले साल भी 33 नागरिकों को निशाना बनाया गया था. इससे पहले साल 2019 में 36 लोगों को मारा गया था. जबकि साल 2018 में ये आंकड़ा 86 था. देखा जाए तो दो साल पहले की तुलना में ये आंकड़े कम हैं. लेकिन इस बार आतंकी अल्पसंख्यकों को निशाना बना रहे हैं.
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