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IPL 2022: 10 टीमें होने के बाद साल में 2 बार आईपीएल कराने की होगी मांग, BCCI पर बढ़ेगा दबाव

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ईपीएल से पहले ललित मोदी को क्रिकेट सर्किल में लोग बहुत गंभीरता से नहीं लेते थे, क्योंकि वो काफी युवा और जोश वाले बीसीसीआई अधिकारी दिखते थे. मुझे अब भी याद है कि जयपुर में अक्टूबर 2006 की एक शाम मोदी ने ऐसे ही अनौपचारिक तौर पर कहा कि उनके पास एक ऐसी योजना है, जिससे आने वाले वक्त में लोग देशों के बीच आपसी मुकाबले की बजाय क्लब या शहरों के मैचों की तरफ ज़्यादा जुडेंगे. ईमानदारी से कहूं तो ये बात उस वक्त बिलकुल समझ में ही नहीं आई थी कि मोदी दरअसल कहना क्या चाह रहे थे.

करीब दो साल बाद दिल्ली में मोदी ने एक पांच सितारा में भव्य प्रेस कांफ्रेस की, जिसमें वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिये शेन वार्न लंदन से जुड़े और आईपीएल का ऐलान हुआ. ये ख़बर लेकर जब मैं अपने चैनल के न्यूज़ रूम में आया औऱ हर किसी को समझाने की कोशिश की, कि यह क्रिकेट के लिए क्रांतिकारी ख़बर है. इससे खेल ही बदल जाएगा तो हर किसी ने हंसते हुए मुझे उसी अंदाज़ में नज़रअंदाज़ किया, जैसा जयपुर में उस शाम मैंने मोदी को किया था.

बहरहाल, समय का पहिया आईपीएल के संदर्भ में घूमा ही नहीं, बल्कि इतनी तेज़ी से घूमा है कि यकीन करना मुश्किल है कि आज दुनिया भर के ज़्यादातर खिलाड़ियों के लिए इस टूर्नामेंट में खेलना अपने देश से खेलने के मुकाबले से ज़्यादा अहम हो गया है. जब 25 तारीख को बीसीसीआई दो और नई टीमों का ऐलान करेगा, तो एक बार फिर से आईपीएल में टीमों की संख्या 10 हो जाएगी. इससे पहले भी 10 टीमों का प्रयोग बीसीसीआई ने पहले किया था, जब सहारा पुणे वरियर्स और कोच्चि टस्कर्स ने शिरकत की थी.

लेकिन, वो वक्त से पहले का प्रयोग था और ज़रूरत से ज़्यादा महत्वकांक्षी और शायद इसलिए नाकाम भी हुआ. इस बार नाकामी की कोई संभावना नहीं दिखती है. इसलिए 2008 में सबसे महंगी टीम के तौर पर बिकने वाली मुंबई इंडियंस 450 करोड़ में आई थी, एक दशक बाद पुणे, अहमदाबाद या लखनऊ जैसे तीन शहरों में से 2 में से जो भी नई टीम खरीदेगी, उसे कम से कम 3000 करोड़ खर्च करने पडेंगे. भले ही कहने को बेस प्राइस करीब 2000 करोड़ का है, लेकिन इस बात की संभावना है कि टीम उसी के हाथ लगेगी जो 3000 करोड़ या उससे ज्यादा खर्च करने की हिम्मत रखतें हों.

इससे आईपीएल कितना बदलेगा?

जो सबसे पहला सवाल हर किसी के ज़ेहन में आता है कि 2 नई टीमों की एंट्री से आईपीएल कितना बदल जायेगा. काफी बदलेगा. अब तक दो महीने में करीब 60 मैच आपको देखने को मिलते हैं. मुमकिन है 2.5 महीने का टूर्नामेंट हो और मैचों की संख्या करीब 75 हो. अगर दो महीने के भीतर ही टूर्नामेंट को समेटना हो तो डबल हेडर वाले मैचों की संख्या भी अब काफी बढ़ जाएगी. लेकिन, जो असली बदलाव अब नए दौर में दिखने को मिल सकता है और वो ये कि अब फ्रैंचाइजी की ताकत शायद पहले के मुकाबले बढ़े.

अब टीमें इस बात पर आने वाले सालों में दबाव बना सकती हैं कि साल में एक की बजाए दो बार आईपीएल का आयोजन हो. एक बार भारत में और एक बार भारत से बाहर. संयुक्त अरब अमीरात और 2009 में साउथ अफ्रीका में आईपीएल के कामयाब आयोजन इस बात के गवाह हैं और जिस तरह से अमेरिका और इंग्लैंड में भी इस टूर्नामेंट की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है, उससे इस टूर्नामेंट के साल में एक बार भले ही छोटे रुप में विदेश में आयोजन से इंकार नहीं किया जा सकता है.

इतना ही नहीं, पिछले कई सालों से टीमें विदेश में एक-दूसरे के ख़िलाफ़ छोटी सीरीज़ खेलने की हसरत रखती हैं. ऐसे में आने वाले वक्त में आपको मुंबई इंडियंस और चेन्नई सुपर किंग्स की टीमें न्यूयार्क में तीन मैचों की टी20 सीरीज़ खेलती नज़र आएं तो हैरान मत हों. अगर आपको इस बात पर यकीन नहीं होता है तो आपने कभी सोचा था कि शाहरुख़ ख़ान के  पास कोलकाता व नाइट राइडर्स के अलावा कैरेबियन प्रीमियर लीग और साउथ अफ्रीका लीग में भी एक-एक टीमों पर मालिकाना हक हो सकता है.

सीपीएल में तो पंजाब की टीम ने भी एंट्री मार ली है. दरअसल, यही भविष्य की रुप रेखा है. मुमकिन है कि इंग्लैंड के बड़े उधोगपति बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तरह टाइअप के जरिए आईपीएल में टीमों के मालिक बने और कई भारतीय उधोगपति विदेशी लीग में टीम के सह-मालिक बने.

 खेल के साथ-साथ थोड़ा इकोनॉमी पक्ष भी बदलेगा

अब तक आईपीएल में मालिकों के लिए कमाई का जरिए मुख्‍य तौर पर 4 तरीकों से होता आ रहा है. सबसे पहली और मोटी कमाई सैंट्रल पूल से होती है, जिसमें बीसीसीआई टीवी राइट्स से होने वाली कमाई को हर फ्रैंचाइजी के बीच बराबर हिस्सों में बांटती हैं. 2018 से 2022 के लिए स्टार स्पोर्ट्स बीसीसीआई को हर साल 3270 करोड़ देने का करार है, जिसे वो अगले साल तक निभायेगा. लेकिन, इसके बाद जो भी नया ब्राडकास्टर अगले 5 सालों यानि कि 2023 से 2027 वाली डील जीतता है तो उसे करीब 4000 करोड़ बोर्ड को देने पडेंगे. यानि कि 2 नई टीमों के बढ़ने के बावजूद बाकि पुरानी 8 टीमों की कमाई घटने के बजाए बढ़ने की ही संभावना है.

दूसरा जो सबसे बड़ा कमाई का जरिया है वो हैं स्पांसरशिप, जिसमें मुंबई, कोलकाता और चेन्नई की टीमें अक्सर बाज़ी मार लेती हैं, क्योंकि ये टीमें आईपीएल चैंपियनशिप भी जीतती हैं औऱ इनके पास तगड़े बड़े नाम भी होते हैं, जिससे इस मामले में वो दूसरी टीमों को आसानी से पछाड़ देते हैं. टिकटों की बिक्री यानि की गेट मनी से भी टीमों को कमाई होती है, लेकिन यहां पर भी चेन्नई और मुंबई को फायदा मिलता है, क्यों ये दोनों शहर पंरपरागत तौर पर क्रिकेट सेंटर रहें हैं और आर्थिक तौर पर इन शहरों के फैंस के पास टिकट पर खर्च करने के लिए पैसे भी होते हैं जो पंजाब, राजस्थान और मुमकिन है दो नई टीमों वाले शहरों के साथ ऐसा नहीं हो.

और सबसे आखिर में होती है टूर्नामेंट के जीतने से प्राइज के जरिए होने वाली कमाई. यहां पर भी देखा जाए तो बड़ी टीमों को ही अक्सर बाज़ी हाथ लगती हैं, लेकिन ये बहुत ज़्यादा फायदेमंद सौदा होता नहीं है, क्योंकि आईपीएल नीलामी के दौरान बड़ी टीमें बाकी टीमों के मुकाबले अपनी टीमों को मज़बूत करने के लिए पैसे भी पानी की तरह बहाती हैं. ऐसे में दो नई टीमों के आने से अगर किसी एक पार्टी की सबसे ज़्यादा चांदी होने वाली है तो वो हैं सुपर स्टार खिलाड़ी! हर कोई चाहेगी कि धोनी, कोहली और रोहित जैसे खिलाड़ी उन्हीं की टीमों में शामिल हों. 

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

ब्लॉगर के बारे में

विमल कुमार

न्यूज़18 इंडिया के पूर्व स्पोर्ट्स एडिटर विमल कुमार करीब 2 दशक से खेल पत्रकारिता में हैं. Social media(Twitter,Facebook,Instagram) पर @Vimalwa के तौर पर सक्रिय रहने वाले विमल 4 क्रिकेट वर्ल्ड कप और रियो ओलंपिक्स भी कवर कर चुके हैं.

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