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मनोज मुंतशिर ने ‘साहित्यिक चोरी’ के आरोपों पर दी सफाई, बोले- 3 साल बाद कविता पर बात हो रही है, ये…’

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देश और बॉलीवुड के पॉपुलर कवि और गीतकार मनोज मुंतशिर (Manoj Muntashir) इन दिनों विवादों में घिरों हुए हैं. उन पर ‘साहित्यिक चोरी’ यानी ‘प्लेगरिज्म’ का आरोप लग रहा है.  कविता का नाम ‘मुझे कॉल करना’ है. एक कविता के लिए उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जा रहा है. ये कविता साल 2019 में आई उनकी एक किताब ‘मेरी फितरत है मस्ताना’ में छपी थी. लोगों का कहना कि ये कविता किसी और ने लिखी थी. मनोज ने इसका हिंदी अनुवाद कर अपनी किताब में छाप दिया है. इसे लेकर ट्रोल होने पर उन्होंने पहले एक ट्वीट के जरिए अपनी प्रतिक्रिया दी.

मनोज मुंतशिर (Manoj Muntashir Tweet) ने अपने ट्वीट में लिखा, ‘200 पन्नों की किताब और 400 फिल्मी- ग़ैर फिल्मी गाने मिलाकर सिर्फ 4 लाइनें ढूंढ़ पाए? इतना आलस? और लाइनें ढूंढ़ों, मेरी भी और बाकी राइटर्स की भी. फिर एक साथ फ़ुरसत से जवाब दूंगा. शुभ रात्रि!.’

इसके बाद उन्होंने आजतक को दिए इंटरव्यू में विस्तार से इस पर अपना पक्ष रखा है. उन्होंने पहले तंज भरे लहजे में भगवान का आभार जताया और कहा कि उनकी किताब को लेकर वह दुनियाभर में घूमे लेकिन 3 साल बाद उसपर बात हो रही है. वह इसे सकारात्मक तरीके से देख रहे हैं.

मनोज मुंतशिर ने खुशी जताई कि कई बड़े-बड़े राइटर्स गुमनाम हो जाते हैं. उनके हालात बदल जाते हैं. उन्होंने ये भी कहा कि जिस देश में एक्ट्रेसेज के एयरपोर्ट लुक पर हेडलाइन बनती हैं, वहां उनकी कविता पर बात हो रही है. उन्होंने कहा ,’इसी क्रांति का ख्वाब देखते हुए निराला और नागार्जुन चल बसे. मेरा सौभाग्य है कि मैं इस क्रांति का दूत बन पाया.’

उन्होंने कविता के अनुवाद पर प्रतिक्रिया दी और कहा कि उनकी हर कविता या गीत सौ प्रतिशत ऑरिजनल नहीं है. भारत में सिर्फ दो ही मौलिक रचनाएं हैं वाल्मीकि की रामायण और वे व्यास की महाभारत. इसके बाद जो कुछ भी लिखा गया सब इन्हीं से प्रेरित है.

मनोज ने माना की उनकी कविता में रॉबर्ट लेवरी की छाप है. उन्होंने ये भी कहा, ‘मैं कुछ भी लिखूं, मेरे शब्दों पर अनगिनत दिग्गज लेखकों झलक दिखती है. आज मेरा मीडिया ट्रायल हो रहा है लेकिन जब किसी ने सवाल नहीं भी पूछा था तो भी मैंने खुद जनता के बीच जा कर कि मेरे लिखे हुए सुपर हिट गीतों पर हिंदी और उर्दू कविता के दिग्गजों की छाप है.  जो भाव, या अभिव्यक्तियां पब्लिक डोमेन में हों, उनपर कोई भी लेखक अपनी तरह से लिख सकता है.

‘वन्दे-मातरम’ बंकिम चंद्र जी की रचना है, लेकिन इतनी प्रसिद्ध हुई कि पब्लिक डोमेन में आ गई. जब एआर रहमान ‘मां तुझे सलाम’ जैसा बेहतरीन गीत बनाते हैं तो हुक लाइन में ‘वन्दे मातरम’ का सीधा अनुवाद कर लिया जाता हैं, ‘वन्दे-मातरम’ यानी, ‘मां तुझे सलाम’. गीत के लेखक में कहीं बंकिम जी का नाम नहीं दिया जाता और वो जरूरी भी नहीं है क्योंकि ‘वन्दे-मातरम’ पब्लिक डोमेन में है.

मनोज ने आगे कहा, ‘कबीर की रचना ‘मेरी चुनरी में परी गयो दाग पिया’ फिल्मों में आके, ‘लागा चुनरी में दाग’ बन जाता है और गीतकार में ‘साहिर’ का नाम होता है कबीर का नहीं, क्योंकि कबीर की रचना पब्लिक डोमेन में जा चुकी है. बिलकुल ऐसे ही, रॉबर्ट लेवरी की कविता पब्लिक डोमेन में है, मैंने उसे अपने अंदाज और अपने तरीके से लिखा है. अगर कभी किसी मंच पर मेरी इस कविता का जिक्र आया होगा तो मैंने फ़ौरन लेवरी का नाम लिया होगा.’

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