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अब बिना साइड इफेक्ट के संभव होगा कैंसर का इलाज, इस नई थेरेपी से मिलेगा जीवनदान

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नई दिल्‍ली. सोचिए, अगर महज एक छोटे से जीन को टारगेट (लक्षित) करके कैंसर (Cancer) का इलाज हो जाए तो. जब कैंसर (Cancer Types) की बात हो रही है तो स्तन, प्रोस्टेट, फेफड़े, लिवर, बड़ी आंत और कोलन जैसे सभी जगहों के कैंसर इसमें शामिल हैं. खास बात यह है कि जिस जीन को लक्षित किया जा रहा है, उसका सेहत से जुड़ी गतिविधि में कोई विशेष योगदान नहीं होगा. ऐसे में बहुत कम या लगभग ना के बराबर साइड इफेक्ट के साथ इस जीन को निशाना बनाया जा सकता है.

कैंसर जीवविज्ञानी यिबिन कांग पिछले 15 सालों से इस अनजान लेकिन बेहद घातक जीन एमटीडीएच या मेटाडेहरिन की खोज में लगे हुए थे. यह जीन दो अहम तरीकों से कैंसर होने की वजह बनता है. इसे अभी चूहे और इंसानी ऊतकों के साथ प्रयोग किया गया है और जल्दी ही इंसानों पर यह ट्रायल के लिए तैयार हो जाएगा. मोलिक्यूलर बायोलॉजी के प्रोफेसर कांग का कहना है कि आपको इससे बेहतर कोई दवा नहीं मिल सकती है.

एमटीडीएच इंसानों में होने वाले लगभग सभी कैंसर में अहमियत रखता है. यह सामान्य ऊतकों के लिए महत्वपूर्ण नहीं होता है इसलिए इसका कोई भी साइड इफेक्ट नहीं होता है. उनके जर्नल में प्रकाशित अध्‍ययन से मालूम चलता है कि यह कैंसर पर काफी असरदार होता है और कीमोथेरेपी और इम्यूनोथेरेपी के साथ यह और कारगर साबित हो सकता है. भले ही मेटास्टेटिक कैंसर काफी घातक होते हैं लेकिन यह पता लगाकर कि यह कैसे काम करता है, इस तरह से एमटीडीएच जैसे कुछ प्रमुख जीन के बारे में पता करके इसे निशाना बनाया जा सकता है और इसे इलाज के लिए संवेदनशील बना सकते हैं.

वर्षों से कांग मेटास्टेसिस (कैंसर के शऱीर के अंग से दूसरे अंग पर फैलने की क्षमता के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द) पर काम कर रहे हैं. वह यह अच्छी तरह जानते हैं कि मेटास्टेसिस कैंसर को घातक बनाता है. राष्ट्रीय कैंसर इंस्‍टीट्यूट के हालिया आंकड़ों के मुताबिक 99 फीसदी स्तन कैंसर के मरीज इलाज के बाद जीवित रहते हैं, इनमें से महज 29 फीसद ही उस स्थिति में जीवित रह पाते हैं जबकि कैंसर मेटास्टेसिस हो जाता है.

मेटास्टेटिक स्तन कैंसर की वजह से अमेरिका में हर साल 40,000 से ज्यादा मौतें हो जाती हैं. और ऐसे मरीज मानक इलाज जैसे कीमोथेरेपी, लक्षित थैरेपी और इम्यूनोथेरेपी पर सही प्रतिक्रिया नहीं दे पाते हैं. कांग की प्रयोगशाला में उनके सहयोगी और दोनों अध्‍ययनों के लेखक मिन्हांग शेन का कहना है, ‘हमने रासायनिक यौगिक की एक सीरीज की खोज की है जो मेटास्टेटिक कैंसर में कीमोथेरेपी और इम्यूनोथेरेपी की प्रतिक्रिया में बढ़ोतरी कर देता है. फिलहाल यह प्रयोग चूहों पर हुआ है.

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कांग कहते हैं कि यह बहुत हैरान करने वाली बात है कि आपके पास दो मरीज हैं, दोनों ही प्रारंभिक चरण में है लेकिन दोनों के लक्षण पूरी तरह से अलग होते हैं. हम इसे तब तक ढूंढते रहे जब तक हमें वजह नहीं मिल गई. 2004 में जब कांग प्रिंसटन आए उसी साल पहली बार एमटीडीएच को चूहे में स्तन ट्यूमर में खोजा गया था. कांग के 2009 में प्रकाशित पेपर के बाद एमटीडीएच पर भी ध्यान दिया गया, जहां पता चला कि एमटीडीएच प्रोटीन सामान्य प्रोटीन की तुलना में असामान्य गति से वृद्धि करता है. 30 से 40 फीसद ट्यूमर के नमूनों में पाया गया कि मेटास्टेसिस के लिए यही जिम्मेदार होता है कांग कहते हैं जिस समय इस जीन की खोज हुई उस दौरान कोई नही जानता था कि यह काम कैसे करता है. इस जीन को लेकर बहुत थोड़ी सी जानकारी मौजूद थी.

इसमें किसी दूसरे इंसानी प्रोटीन से कोई समानता नजर नहीं आती थी. इनकी टीम ने लगातार इस पर शोध किया और 2014 में पेपर की एक श्रंखला प्रकाशित हुई जिसमें बताया गया कि एमटीडीएच कैंसरो बढ़ाने और मेटासाइज के लिए जिम्मेदार होता है. इस जीन के चूहा सामान्य रूप से बढ़ता है, जिससे जाहिर होता है कि यह जीन सामान्य जिंदगी में कोई अवरोध पैदा नहीं करता है. खास बात यह कि जिन चूहों में स्तन, ट्यूमर था उनमें ट्यूमर मेटासाइज नहीं हुआ था.

कांग की टीम ने पाया कि ऐसा ही प्रोस्टेट, फेफडों और कोलोरेक्टल कैंसर में भी यह बात जाहिर हुई थी. उसी दौरान एमटीडीएच की क्रिस्टल संरचना से मालूम चला कि इस प्रोटीन में दो उंगलियों की तरह आकृति होती है, जो एक अन्य प्रोटीन एसएनडी1 पर निर्भर होते हैं. इस तरह से अगर एसएनडी1 से इसका नाता तोड़कर एमटीडीएच के खतरनाक प्रभावों को बेअसर कर देगा.

दो तंत्र और कोई साइड इफेक्ट नहीं
कांग और उनके साथियों ने पाया कि एमटीडीएच में दो प्रमुख तंत्र होते हैं. जो ट्यूमर को उन तनावों से बचाता है जो आमतौर पर बढ़ते हैं या कीमोथेरेपी के उपचार के दौरान लोग अनुभव करते हैं. उनका कहना है कि दरअसल हमारा इम्यून सिस्टम इस तरह से बना होता है कि अगर उसे समझ नहीं आए कि कोई कोशिका पर हमला हुआ है तो उसके लिए मदद नहीं भेज सकता है, एमटीडीएच-एसएनडी 1 उसी रास्ते को दबाने का काम करता है जहां से इम्यून सिस्टम को खतरे के संकेत मिलते हैं. इस दवा के जरिए उस अलार्म सिस्टम को सक्रिय किया जा सकता है. इस तरह से कीमोथेरेपी और इम्यूनथेरेपी ज्यादा असर दिखा सकती है. खास बात यह है कि यह खुद ज्यादा जहरीला नहीं होता है इसलिए इसके साइड इफेक्ट नहीं है. साथ ही इसका असर किसी विशेष कैंसर पर नहीं होकर सभी तरह के कैंसर पर होता है.

Tags: Cancer



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