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एशियाई और कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स में पदक जीतने वाला बॉक्‍सर कर रहा सिक्‍योरिटी गार्ड की नौकरी, बच्‍चे छोड़ चुके हैं पढ़ाई

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अभिनव कुमार

जमशेदपुर. अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर कभी देश का नाम रोशन करने वाला चैंपियन मुक्‍केबाज आर्थिक कठिनाइयों के दौर से गुजर रहा है. न तो बॉक्सिंग महासंघ ने और न ही सरकार ने इस चैंपियन की ओर मदद का हाथ बढ़ाया है. किसी संस्‍था ने भी इनकी तरफ नहीं देखा है. ऐसे में एशियन और राष्‍ट्रमंडल खेलों में भारत को रजत ओर कांस्‍य पदक दिलाने वाले मुक्‍केबाज बिरजू साह दो जून की रोटी की जुगाड़ में सिक्‍योरिटी गार्ड की नौकरी करने को मजबूर हैं. आर्थिक कठिनाइयां ऐसी हैं कि उनके बच्‍चों ने पैसों की तंगी के चलते पढ़ाई-लिखाई छोड़ दी. वह किसी तरह से परिवार के लिए दो वक्‍त के खाने का इंतजाम कर पा रहे हैं.

हमारे देश में क्रिकेट खिलाड़ियों को छोड़ बाकी स्पोर्ट्स के खिलाड़ियों का क्या हाल है, यह किसी से छुपा नहीं है. इसी का ताज़ा उदाहरण हैं जमशेदपुर के बॉक्सिंग प्लेयर रहे बिरजू साह. उनका नाम कभी वर्ल्ड के टॉप 7 बॉक्सिंग प्लेयर में शुमार हुआ करता था. बिरजू साह ने इंडिया के लिए साल 1994-95 में सिल्वर व ब्रॉन्ज़ मेडल एशियाई गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स (जापान) में जीता था. बिरजू साह ने देश में खेले गए विभिन प्रतियोगिताओं में न जाने कितने मेडल जीत रखे हैं. दुर्भाग्य की बात यह है कि घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से बिरजू पिछले 7 साल से सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहे हैं. बिरजू के पिता और पत्नी दोनों पैरालिसिस से ग्रसित हैं. उनके 2 बच्चे हैं, जिन्होंने पढ़ाई छोड़ दी है. बिरजू साह का कहना है कि उन्होंने बॉक्सिंग को हमेशा खुद से और परिवार से आगे देखा है, पर कहीं न कहीं सरकार और स्‍पोर्ट्स की राजनीति ने उन्हें और उनके टैलेंट को पीछे छोड़ दिया.

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बिरजू साह बताते हैं कि उन्‍हें बॉक्सिंग का जुनून आज भी उतना ही है, जितना पहले था. इसे बस बात से समझा जा सकता है कि गॉर्ड की नौकरी बाद समय निकाल कर वह बच्‍चों को बॉक्सिंग की ट्रेनिंग देते हैं. वह खुद भी रोज़ प्रैक्टिस करते हैं, ताकि खुद को फिट रखा जा सके. बिरजू साह का कहना कि एक बार रिंग में उतर जाने के बाद वह अपना सारा दुख-दर्द भूल जाते हैं. बिरजू ने कहा कि उन्हें कोई याद रखे या न रखे, लेकिन वह जिंदगी से लड़ते रहेंगे, क्योंकि वह कल भी एक प्लेयर थे और आज भी एक प्‍लेयर हैं.

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