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UP Chunav: हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही की दुश्मनी ने कैसे पूर्वांचल की सियासत को बदलकर रख दी…

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गोरखपुर. देश में जब इंदिरा गांधी की सरकार को हटाने के लिए जेपी आंदोलन चल रहा था, ठीक उसी समय उत्तर प्रदेश की सियासत में बाहुबलियों की एंट्री पूर्वांचल (Poorvanchal Politics) से हो रही थी. 1980 के दशक में पूर्वांचल बाहुबलियों की गिरफ्त में आ चुका था. यही वो दौर था जब एक बाद एक कई बाहुबलियों ने राजनीति में इंट्री ली थी. गोरखपुर से इसकी शुरुआत पंडित हरिशंकर तिवारी (Harishankar Tiwari) ने की और उन्हीं के साथ राजनीति में उतरे उनके कट्टर विरोधी वीरेन्द्र प्रताप शाही.

पंडित हरिशंकर तिवारी की राजनीति में एंट्री 1972-73 में हो चुकी थी. तब वो एमएलसी का चुनाव लड़े थे, लेकिन हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद हरिशंकर तिवारी ने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा पर उन्हें हरवाने का आरोप लगाया था. हरिशंकर तिवारी राजनीति के साथ-साथ ठेकेदारी कर रहे थे. उसी समय उनके साथ वीरेन्द्र प्रताप शाही (Virendra Pratap Shahi) भी जुड़े… दोनों एक दूसरे के साथ काम करने लगे. कई बार हरिशंकर तिवारी ने विरेन्द्र प्रताप शाही का बचाव भी किया पर लेनदेन के विवाद में दोनों के बीच टकराव शुरू हो गया और दोनों के रास्ते अलग हो गए.

एक हत्या से ठाकुरों के सर्वमान्य बने वीरेंद्र शाही
इसी बीच गोरखपुर के कौड़ीराम से विधायक रविन्द्र सिंह की 1979 में हत्या कर दी जाती है, जिसके बाद वीरेन्द्र प्रताप शाही ठाकुरों के सर्वमान्य नेता हो जाते हैं और 1980 में महराजगंज के लक्ष्मीपुर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वो शेर चुनाव चिह्न पर निर्दलीय चुनाव जीत जाते हैं और फिर उसके बाद 1985 में भी चुनाव जीतते हैं.

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इधर हरिशंकर तिवारी का रेलवे के ठेके से लेकर अन्य जगहों पर वर्चस्व बढ़ता जा रहा था. 1985 के विधानसभा चुनाव के दौरान हरिशंकर तिवारी देवरिया जेल में बंद थे और वहीं से उन्होंने गोरखपुर की चिल्लुपार विधानसभा सीट से निर्दलीय साइकिल चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ा और विजयी हुए, जिसके बाद से 2007 तक वो इस सीट पर जीतते रहे.

जेल में रहकर चुनाव जीतने वाले पहले विधायक हरिशंकर तिवारी
हरिशंकर तिवारी पहले ऐसे बाहुबली विधायक हैं, जो जेल में रहते हुए चुनाव लड़े और विजयी हुए. ऐसा कहा जाता है कि यूपी में वीर बहादुर सिंह की सरकार गैगेस्टर, गुंडा एक्ट हरिशंकर तिवारी के लिए ही लेकर आई थी. तिवारी 1997 से लेकर 2007 तक लगातार यूपी सरकार में मंत्री बने रहे. 80 के दशक में तिवारी और शाही के बीच खूब गैंगवार हुए, लेकिन 90 के दशक में बंदूखे थम सी गई.

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इन दोनों लोगों को देखकर पूर्वांचल में अपराधी छवि वाले नेताओं की दखल राजनीति में तेजी से बढ़ी, मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह, उमाकांत यादव, रमाकांत यादव सहित तमाम ऐसे नाम हैं, जो इन्हीं के नक्शे कदम पर आगे बढ़े और माननीय भी बने. हरिशंकर तिवारी की राजनीतिक विरासत को उनके पुत्र विनय शंकर तिवारी आगे बढ़ा रहे हैं 2017 के विधानसभा चुनाव में वो चिल्लुपार से विधायक बने. हरिशंकर तिवारी के बड़े पुत्र भीष्म शंकर तिवारी संत कबीरनगर से सांसद रह चुके हैं.

‘वर्चस्व’ किताब के लेखक संदीप के पान्डेय कहते हैं कि इटली का सिसिलियन माफिया हो, कोलंबियाई कार्टेल हो, मेक्सिकन माफिया हो या फिर देश का ही मुंबई अंडरवर्ल्ड हो इन सबमें जो कॉमन फैक्टर था वो ये था कि ये सब ड्रग्स, प्रॉपर्टी, स्मगलिंग से जुड़े थे. लेकिन इनके बरअक्स उत्तर भारत खासकर यूपी-बिहार में माफिया के पनपने का कारण जातीय गौरव और सामाजिक वर्चस्व की भावना थी. जाति और बाहुबल के कॉकटेल को समाज और राजनीति दोनों की दोहरी स्वीकार्यता मिली. यही कारण है कि राजनीति में बाहुबलियों की एंट्री का ट्रेंड यहां से शुरू हुआ.

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Tags: Criminal Politics, Gangwar, Gorakhpur news, UP Election 2022



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