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क्‍या है 3000 साल पुरानी ‘दोखमेनाशिनी’ परंपरा, जिसके लिए चर्चा में है पारसी समुदाय, जानें सबकुछ

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नई दिल्‍ली. पारसी कम्युनिटी करीब 1000 साल पहले पर्सिया (ईरान)  से आकर भारत में बसी थी. धीरे-धीरे पारसी समुदाय भारत में रच-बस गया, लेकिन उन्‍होंने अपनी संस्‍कृति को बनाए रखा. ऐसी ही है अं‍तिम संस्‍कार से जुड़ी उनकी 3000 साल पुरानी ‘दोखमेनाशिनी’ परंपरा, जिसे समुदाय बनाए रखना चाहता है. हालांकि समय के साथ इसमें बदलाव आया है. गिद्धों की आबादी में गिरावट के कारण दोखमेनाशिनी के तहत शवों के डिकंपोज होने में जरूरत से ज्यादा समय लगना भी एक बड़ा कारण रहा है.

यह परंपरा अंतिम संस्‍कार से जुड़ी हुई है. दोखमेनाशिनी प्रक्रिया के तहत शव को ‘दखमा’ जिसे अंग्रेजी में टॉवर ऑफ साइलेंस कहते हैं, जहां पारसी लोगों के शवों को उनके रीति-रिवाजों के अनुसार अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जाता है. यहां समुदाय के ही कुछ खास लोग, शव को टॉवर के ऊपर पर छोड़ देते हैं और वहां मंडराते गिद्ध उसे अपना भोजन बनाते हैं और हड्डियां धीरे-धीरे डिकंपोज हो जाती हैं.

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गिद्धों की कमी और हर जगह टॉवर ऑफ साइलेंस नहीं होने के कारण ने पारसी समुदाय ने शवों के अंतिम संस्कार के लिए नया सिस्टम तैयार कर लिया है. मुंबई के टॉवर ऑफ साइलेंस गार्डन में सोलर सिस्टम और नया प्रेयर हॉल बनाया गया है.  पहले पहाड़ी की चोटी पर ले जाकर शवों को खुले आसमान के नीचे बने ‘दखमा’ जिसे अंग्रेजी में टॉवर ऑफ साइलेंस कहते हैं, में रखा जाता था जहां शव, गिद्धों और चीलों का भोजन बन जाते थे.  पारसियों में आज भी शवों को ना तो दफनाया जाता है और न ही जलाया जाता है. वे शव को चील या गिद्ध घर में रखते, ताकि परिजनों के शव पक्षियों का भोजन बन जाएं.

पारसी समुदाय ने बदली परंपरा

पारसी समुदाय ने अब शव को ऐसी जगह रखना शुरू किया है जहां पहले से ही सोलर एनर्जी की प्लेटें लगी होती हैं. यहां शव धीरे-धीरे जलकर राख होता है. कई परिवारों ने मजबूरी में सालों पुरानी परंपरा छोड़कर नए सिस्टम को अपना लिया है. बताया जाता है कि बॉम्बे पारसी पंचायत ने शवों के अंतिम संस्कार में मदद के लिए दखमा में सौर पैनल भी लगा रखे हैं. बॉम्बे पारसी पंचायत के पूर्व ट्रस्टी दिनशॉ तंबोली ने बताया कि लोग नए सिस्‍टम को स्‍वीकार कर रहे हैं, लेकिन वे अपनी पुरानी परंपरा को ही कायम रखना चाहते हैं. यह नया सिस्‍टम 2015 से आया है. इसमें परंपरा को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचता है क्योंकि डेडबॉडी सोलर एनर्जी से भस्म होती है.

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