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योगी सरकार 2.0

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में लगातार दूसरी बार जीत दर्ज करने के बाद शुक्रवार को योगी आदित्यनाथ ने फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके साथ ही वह राज्य में लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी करने वाले पहले मुख्यमंत्री बन गए हैं। अपनी इस जीत के जरिए उन्होंने न केवल प्रदेश में पार्टी का खासा मजबूत आधार स्थापित किया है बल्कि अपने नेतृत्व और कार्यशैली का एक तरह से सिक्का जमाया है। कार्यशैली की चर्चा इसलिए भी हो रही है क्योंकि उनके पहले कार्यकाल के दौरान इसे न केवल विरोधियों की ओर से मुद्दा बनाया जाता रहा बल्कि पार्टी के अंदर भी दबे स्वर में इसकी शिकायत सुनी जाती रही। मगर पार्टी को फिर जीत दिलाकर योगी ने साबित किया कि बीजेपी के सर्वोच्च नेतृत्व का उनमें जताया गया विश्वास गलत नहीं था।

बहरहाल, ध्यान देने की बात यह है कि योगी सरकार 2.0 के लिए जो टीम चुनी गई है, उसमें परिवर्तन के साथ निरंतरता कायम रखने की दूरदर्शितापूर्ण समझ झलक रही है। योगी सरकार के पहले कार्यकाल में उपमुख्यमंत्री रहे केशव प्रसाद मौर्य के विधानसभा चुनाव हार जाने के बाद से ही यह सवाल पूछा जा रहा था कि क्या उन्हें मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी। हालांकि वह प्रदेश बीजेपी में ओबीसी वर्ग के प्रमुख और सबसे विश्वसनीय चेहरा रहे हैं और 2017 के बाद 2022 के चुनावों में मिली जीत में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका मानी गई।

बावजूद इसके, अगर इस तरह की अटकलें चलती रहीं कि उन्हें ड्रॉप किया जा सकता है तो इसके पीछे कुछ हाथ उन खबरों का भी रहा, जो यह संकेत देती थीं कि मुख्यमंत्री के साथ उनके रिश्ते मधुर नहीं हैं। मगर केशव प्रसाद मौर्य को न केवल मंत्रिमंडल में शामिल किया गया बल्कि पहले की ही तरह उपमुख्यमंत्री का पद भी दिया गया। हालांकि दूसरे उपमुख्यमंत्री रहे दिनेश शर्मा की जगह इस बार ब्राह्मण समाज के ही ब्रजेश पाठक को दे दी गई। इसी तरह प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और उत्तराखंड की राज्यपाल रहीं बेबीरानी मौर्य को मंत्रिमंडल में लेना भी महत्वपूर्ण है। स्वतंत्रदेव सिंह कुर्मी समुदाय के प्रभावशाली नेता हैं तो बेबीरानी मौर्य जाटव समाज से आती हैं।

मायावती का विश्वस्त वोट बैंक माने जाने वाले इस समुदाय में अगर बीजेपी इस बार अपनी कुछ पैठ बना सकी है तो उसका श्रेय काफी हद तक बेबीरानी मौर्य को भी जाता है। हालांकि उत्तर प्रदेश जैसे विशाल और विविधतापूर्ण राज्य में कोई भी मंत्रिमंडल ऐसा नहीं हो सकता जिसमें हर तबके और हर क्षेत्र की संतोषजनक नुमाइंदगी का दावा किया जा सके। मगर सही अनुपात में नुमाइंदगी से जुड़े तमाम दावों की असली परीक्षा सरकार के कामकाज से ही होती है। योगी सरकार के सामने भी मूल चुनौती अपने दूसरे कार्यकाल को पहले से बेहतर बनाने की ही है।

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